Thursday, June 23, 2016

Wednesday, June 22, 2016

Hazrat Ali a.s sabse pehle imaan laayen:::Sunni Scholar Imam Ibne Kaseer






Please recite Surah Fatiha for Najma Begam binte Alam Sher khan 

Mohtaje Dua; Askari Hasan Zaidi 

Thursday, May 19, 2016

Imam Khumaini r.a ek nazar

बिस्मिल्लाह हिर्राह्मानिर्रहीम  
20 जमादिउस्सानी 1320 हिजरी /24 सितम्बर 1902 को शाहरीवार नामी जगह जो की ईरान में है एक बच्चे का जन्म हुआ उस बच्चे का नाम रूहुल्लाह रखा गया .आपका का घराना बहुत ही मज़हबी (धार्मिक) था और आपके घराने ने काफी इस्लाम धर्म की खिदमात की थी .इमाम मूसा काज़िम अ.स की नस्ल में इमाम खुमैनी र.अ इस दुनिया में तशरीफ़ लाए .इमाम खुमैनी र.अ के पिता का नाम अयातुल्लाह सय्यद मुस्तुफा मूसवी र.अ था .आप के पिता काफी साल नजफ़ ए अशरफ में रहे और आपने वहां पर फ़िक्ह (Jurisprudence)का इल्म हासिल करते रहे और अपने इस इल्म को अमल में लाते रहे .कुछ समय बाद इमाम खुमैनी के पिता इराक से ईरान वापस आगये और खुमैन नामी जगह पर आप एक धार्मिक गुरु के तौर पर पहचाने जाने लगे.जब इमाम खुमैनी सिर्फ 5 महीने के थे तो ईरान की ज़ालिम हुकूमत के हाथों आप के पिता शहीद करदिये गए .बचपने से इमाम खुमैनी ने यतीम होने का दर्द देखलिया था और शहादत की माने भी समझ चुके थे .रजब १३४० (1340) हिजरी में इमाम खुमैनी र.अ क़ुम नामी शहर की तरफ चले गए .क़ुम में उलेमा -ए -दीन से इल्म-ए-दीन सीखते रहे .आपके उस्तादों में अयातुल्लाह सय्यद मुहम्मद तकी खोंसारी ,अयातुल्लाह सय्यद अली यस्राबी कशानी ,अयातुल्लाह शेख अब्दुल करीम र.अ ,अयातुल्लाह बुरूजर्दी र.अ का नाम आता है .इमाम खुमैनी ने इल्मे फ़िक्ह(Jurisprudence) ,इल्मे मंतिक (philosophy),इल्मे इरफ़ान (Mysticism) और अखलाक़(Ethics) में महारत हासिल करली .इमाम खुमैनी ने काफी साल इल्मे इरफ़ान ,इल्मे अखलाक और फ़िक्ह पढ़ाते रहे .आपने नजफ़ में 14 साल मस्जिदे शेख मुर्तुजा अंसारी र.अ में इल्मे फ़िक्ह ओ अह्लुल्बय्त अ.स की तालीम देते रहे .
इमाम खुमैनी र.अ के लिए चुनौतिया जवानी में ही सामने आगई थी.1340 हिजरी यानी 1962 में एक शहर में डिस्प्यूट में इमाम खुमैनी को एक लीडर की तरह काम करना पड़ा. 5 जून 1963 में दो बहुत आउटस्टैंडिंग विशेषताए प्रकट हुई उनमे से एक इमाम खुमैनी र.अ की लीडरशिप थी और दूसरी ईरान के इन्क़ेलाब की शुरुवात थी .रेज़ा खान पहेल्वी ईरान में पॉवर में आचुका था .और वोह एक बहुत बड़ा खतरा था लोगों के लिए और उलेमा-ए-हक के लिए भी .ईरान के हालात हुकूमत की तरफ से बद से बत्तर होते जा रहे थे उसकी वजह थी अमेरिकी और यूरोपियन कल्चर. ईरान में हालत ये हो चुकी थी की अय्याशियाँ और बुरय्याँ खुलकर हो रही थी और उसकी वजह थी हुकूमत .हुकूमत ने अमेरिकन और यूरोपियन कल्चर से भी बत्तर ईरान के कल्चर को करदिया था इस्लामिक इन्केलाब आने से पहले उलेमा-ए-हक बिलकुल पस्त करदिये गए थे और शैतानी कामो का बोल बाला था .ईरान में नाईट क्लब थे जहाँ लड़कियां डांस करने जाती और शराब आम हो चुकी थी जिसे वहां के मर्द ओ औरत दोनों ऐसे पीते थे जैसे की कोई बात ही नहीं है .उर्यानियत बहुत तेज़ी से फैल चुकी थी .लोग दीन से दूर हो चुके थे और मस्जिदे खाली होचुकी थी .जुमा के खुत्बों में शाहे ईरान की तारीफें करी जाती थी .हक दब चूका था ऐसे में आलिमे दीन पर वाजिब था की उठे और उम्मत की इस्लाह करें उसे हक से आगाह करें ,अल्लाह का खौफ दिलाये .ईरानी हुकूमत तागूती यानी शैतानी हुकूमत बन चुकी थी .एक सबसे अहम् बात थी जो की ज़रूरी है लिखा जाये वोह ये थी की एक लॉ शाहे ईरान रेज़ा खा पहेल्वी ने पास किया वोह ये था की अमेरिकी और यूरोपियन कुछ भी ईरान में आकार करेगें तो ईरान की हुकूमत उनको उनके देश को वापस करेदेगी गिरफ्तार करके और उनके क्राइम का केस उनके देश में ही चलेगा मगर अगर कोई ईरानी बहार जाकर यानी अमेरिका या यूरोप में कोई क्राइम करेगा तो उनपर वही की सरकार गिरफ्तार करेगी और केस भी चला सकेगी .इसपर मरदे फकीह अयातुल्लाह खुमैनी र.अ से रहा नहीं गया और आपने ईरानी हुकूमत के नाम पैघाम भेजा की ऐ! शाह तुमने घुलामी खरीद ली है और इस कानून की निंदा की साथ में ईरान के बत्तर हालात का ज़िम्मेदार भी रेज़ा खा पहेल्वी को बतलाया .इमाम खुमैनी ने शाह रज़ा खा पहलवी को इजराइल का एजेंट भी बताया और उसके इजराइल के साथ ताल्लुकात को पूरी कोशिश की के लोगों पर ज़ाहिर करें .आप ने नजफ़ ,क़ुम के और तमाम दुनिया के उलेमा की ख़ामोशी पर निंदा भी की और उसने चाह की वोह भी इस इस्लामिक इन्क़ेलाब में उनका साथ दें .इमाम के बेटे हुज्जतुल इस्लाम सय्यद  अहमद खुमैनी ने एक किताब में अपने पिता इमाम खुमैनी र.अ का एक ज़िक्र किया जिसमे उनको बेअमल उलेमा से तकलीफ पोह्ची थी .इमाम खुमैनी र.अ ने उलेमा से खिताब करते हुए कहा "तुम्हारे बूढ़े बाप ने जामद फ़िक्र नाम नेहाद उलेमा के हाथों जिस तरह खूने जिगर पिया ,हर्घिज़ दूसरों की ईज़ा रसानियों और सख्तियों से नही पिया .1963 में इमाम ने उलेमा की निंदा की ख़ामोशी पर .इमाम खुमैनी र.अ को ईरान से इराक ,फ्रांस की तरफ रेवोलुशन के खातिर जिलावतन होना पढ़ा .मगर इमाम खुमैनी र.अ ने जिस तरह भी होसका ईरानियो और तमाम मुसलमानों को अपने मेसेज से आगाह करते रहें .उलेमा ए हक की एक शाख ने इमाम खुमैनी के इस इन्केलाब में काफी मदद की और अपनी जाने तक देडाली .ईरान के जवानों औरतों ने बहुत बड़ी क़ुरबानी का नज़राना पेश किया और इमाम खुमैनी की बात पर लब्बैक कहते रहें.मगर ये हक की आवाज़ थी और एक ज़बरदस्त आलिम की आरज़ू जो ईरान के इंकिलाब को कमियाबी की चोटी तक ले गयी .14 साल के निर्वासन (EXILE) के बाद इमाम खुमैनी र.अ ईरान अपने वतन वापस अगये और शाह ईरान को ईरान छोड़कर भागना पढ़ गया .और ईरान अब इस्लामिक ईरान की रूप में जानने जाने लगा .1979 में ईरान का इन्किलाब कामयाब होगया और  1989 को वोह घडी आगई जब अल्लाह के आशिक इमाम खुमैनी ने इस दुनिया-ए-फानी को अलविदा कहदिया और दारे बका की तरफ कूंच कर गये.
इमाम खुमैनी की वफात पर ईरान की फिज़ाओ में या हुसैन ! की आवाज़ गूंज उठी लाखो की तादाद में लोग आपकी तद्फीन में शरीक हुए .इमाम खुमैनी र.अ का मज़ार इस वक़्त तेहरान शहर जो की इस्लामिय ईरान की राजधानी है वहां पर मौजूद है .
अल्लाह इमाम खुमैनी के दर्जात को बुलंद करें और हमें भी इस आशिके हुसैन अ.स से सबक लेने की तौफीक दें .


इंग्लैंड के एक भूतपूर्व प्रधान मंत्री ने दुनिया के साम्राजी राजनेताओं के एक सम्मेलन में यह एलान किया था कि हमें
चाहिए कि इस्लाम को इस्लामी देशों में गोशा नशीन कर दें। इससे पहले भी और इसके बाद भी इस काम के लिए बहुत ज़्यादा पैसे खर्च किए गए लेकिन वह कामयाब न हो सके। इमाम खुमैनी (रह) जैसे महान नेता ने इस्लामी इंक़िलाब लाकर इस्लाम को दुनिया के गोशे गोशे तक पहचनवा दिया। और बता दिया कि देखो यह एक खुदाई दीन और धर्म है जिसे दुनिया की कोई ताक़त मिटा नही सकती। आईए उसी महान हस्ती के दस बड़े कारनामों को पेश किया जा रहा है जिसने इस्लामी इंक़िलाब लाकर इस्लाम के दुश्मनों को मायूस कर दिया।
इमाम खुमैनी (रह) ने इस्लाम को एक नई ज़िन्दगी दी
बीते दो सौ बरसों से साम्राजी मशीनरियों ने यह कोशिश की है कि इस्लाम को भुला दिया जाए। इंग्लैंड के एक भूतपूर्व प्रधान मंत्री ने दुनिया के साम्राजी राजनेताओं के एक सम्मेलन में यह एलान किया था कि हमें चाहिए कि इस्लाम को इस्लामी देशों में गोशा नशीन कर दें। इससे पहले भी और इसके बाद भी इस काम के लिए बहुत ज़्यादा पैसे खर्च किए गए ताकि इस्लाम पहले स्टेप में लोगों की दरमियान से खत्म हो जाए और दूसरे स्टेप में लोगों के दिल, दिमाग़ और ज़हन से निकल जाए क्यों कि साम्राजी ताक़तो को यह मालूम था कि यह धर्म बड़ी ताक़तों की लूट घसोंट और साम्राजी ताक़तों के हर बड़ी चीज़ पर क़ब्ज़ा करने के लक्ष्य में सबसे बड़ी रुकावट है। हमारे इमाम खुमैनी ने इस्लाम को दुबारा ज़िन्दा किया लोगों के दिल, दिमाग़ और ज़हन में उतारा और अमली करके बताया कि देखो इस्लाम सियासत से अलग नही है।
इमाम खुमैनी (रह) ने मुसलमानों का वक़ार बहाल किया
इमाम खुमैनी (रह) की क्रान्ति(इन्क़ेलाब) के नतीजे में पूरी दुनिया के मुसलमानों ने इज़्ज़त और सर बुलंदी का एहसास किया और इस्लाम महदूद बहसों से निकल कर सामाजी और सियासी मैदान में दाखिल हुआ। एक बड़े देश के एक मुसलमान शख्स ने जहाँ मुसलमान माईनार्टी (अल्पसंख्यक) में हैं, मुझसे कहा कि इस्लामी इंक़िलाब से पहले मैं खुद को कभी दूसरों के सामने मुसलमान ज़ाहिर नही करता था। मेरे देश के मुसलमान इस देश की रिति और प्रथा के अनुसार अपने बच्चों का नाम रखते हैं यानि इस्लामी नाम नही रख सकते अगरचे वह घर के अंदर अपने बच्चों के नाम इस्लामी रखते हैं लेकिन घर के बाहर ग़ैरे इस्लामी। इस्लामी नाम को घर के बाहर पुकारने की किसी में हिम्मत न थी लोग घर के बाहर इस्लामी नाम लेने से दूरी करते थे। हम खुद को मुसलमान कहने से शर्मिन्दगी का एहसास करते थे।
लेकिन ईरान के इस्लामी इंक़िलाब की कामयाबी के बाद हमारे यहाँ के लोग बड़े गर्व से अपना इस्लामी नाम ज़ाहिर करते हैं और अगर उनसे पूछा जाता है कि आप कौन हैं आपका नाम क़्या है तो गर्व और फख्र के साथ पहले इस्लामी नाम बताते हैं। इस प्रकार इमाम ने जो बड़ा कारनामा अंजाम दिया उसका परिणाम यह निकला कि मुसलमानों को पूरी दुनिया में इज़्ज़त का एहसास होने लगा और वह अपने मुसलमान होने और इस्लाम की पैरवी करने पर फख्र करने लगे।
आपने मुसलमानों को उम्मते वाहिदा का जुज़ होने का एहसास दिलाया
इससे पहले मुसलमान जहाँ भी था उसके लिए उम्मते वाहिदा कि कोई अहमियत नही थी। आज दुनिया के तमाम मुसलमान चाहे वह एशिया में हों या अफरीक़ा में यूरोप में हों या अमरीका में इस बात का एहसास कर रहे हैं कि वह उम्मते इस्लामिया के नाम के एक बड़े अन्तर्राष्ट्रीय समाज का भाग हैं। इमाम खुमैनी (रह) ने उम्मते इस्लामिया के प्रति लोगों में शऊर जगाया और उन्हें जागरुक किया जो अमरीका और इंग्लैन्ड जैसे इस्तेकबारों के मुक़ाबले में इस्लामी समाज की रक्षा के लिए सबसे बड़ा हथियार है।
इमाम खुमैनी (रह) ने दुनिया की सबसे खराब हुकूमत और शासन का खात्मा किया
इमाम खुमैनी (रह) नें ईरान की खराब और बदतर शाही हुकूमत और शासन का खात्मा कर दिया। शाही शासन का अंत इमाम खुमैनी (रह) के कुछ बड़े कारनामों में से एक है जो बिल्कुल सामने है। ईरान उस समय अमरीका और इंग्लैन्ड जैसे इस्तेकबारों का सबसे बड़ा और मज़बूत क़िला बन चुका था जो इमाम के इलाही और मज़बूत हाथ से ढ़ह गया।
इमाम खुमैनी (रह) ने इस्लामी शिक्षाओं और उसूलों की बुनियाद पर हुकूमत बनाई
यह वह चीज़ें हैं जो ग़ैर मुस्लिम तो ग़ैर मुस्लिम मुसलमानों के दिमाग़ों में भी नही समाती थी। यह एक बेहतरीन ख्वाब था जिसकी ताबीर के बारे में सीधे साधे मुसलमान सोच भी नही सकते थे। इमाम ने इलाही मदद के ज़रिए एक ख्वाब को हक़ीक़त में बदल दिया।
इमाम खुमैनी (रह) की तहरीक ने पूरी दुनिया में इस्लामी तहरीकों को जन्म दिया
ईरान के इस्लामी इंक़िलाब से पहले बहुत से देशों में मुस्लिम देशों समेत विभिन्न गुरूप के लोग जैसे जवान, नाराज़ लोग, आज़ादी के माँग करने वाले लोग और लेफ्ट पार्टी वाले अपनी आईडियालाजी के सहारे मैदान में उतरे थे। लेकिन ईरान के इस्लामी इंक़िलाब की कामयाबी के बाद इन सब लोगों के क़्याम की बुनियाद इस्लाम बन गया। आज इस्लामी दुनिया के इतने बड़े इलाक़े में जहाँ कही भी कोई गुरुप इस तरह की तहरीक चलाता है और अमरीका और इंग्लैन्ड जैसे इस्तेकबारों के खिलाफ आवाज़ उठाता है उसका बेस इस्लाम ही होता है और इस्लामी उसूलों को ही अपने काम की बुनियाद बनाता है इस तरह उसकी फिक्र इस्लामी फिक्र होती है।
इमाम खुमैनी (रह) ने शिया फिक़्ह में नई सोच राइज कर दी और नया नज़रिया पेश किया
हमारी फिक़्ह की बुनियाद बहुत ही मज़बूत थी और आज भी है। फिक़्हे शिया बहुत ही मज़बूत और बहुत मोहकम और बहुत मज़बूत उसूलों पर आधारित है। इमाम खुमैनी (रह) ने इस फिक़्ह को चाहे वह हुकूमती फिक़्ह हो, बढ़ाया मज़बूत किया और एक नए अंदाज़ से पेश किया। इस पवित्र फिक़्ह के विभिन्न पहलूओं को हमारे सामने स्पष्ट किया जो इससे पहले स्पष्ट और वाज़ेह न थे।
व्यक्तिगत कामों में राइज ग़लत अक़ीदों को बातिल क़रार दिया दुनिया में यह बात मुसल्लम है कि जो लोग समाज की बड़ी पोस्ट पर होते हैं उनका विशेष तौर तरीक़ा होता है। कुछ घमंड और ग़ुरुर होता है, ऐश और आराम की ज़िन्दगी होती है और इस तरह उनका अपना विशेष ठाट बाट होता है और एक खास अंदाज़ होता है। इस दौर में बड़े शासकों के लिए प्रोटोकाल होता है और वह अपने लिए इसको अपनी सरकारी ज़िन्दगी का लाज़िमा समझते हैं और यह सब ऐसी बातें हैं जिनको दुनिया ने आज क़ुबूल भी लिया है कि जो लोग बड़ी पोस्ट पर होते हैं उनका गोया यह सब हक़ होता है हत्ता उन देशों में जहाँ इंक़िलाब आया है वहाँ के इंक़िलाबी नेता भी जो कल तक खैमों और तम्बुओं में ज़िन्दगी गुज़ारते थे और क़ैद खानों और मख़फी गाहों में छिपे रहते हैं वह जैसे ही शासन में आते हैं उनका रहन सहन बदल जाता है उनके शासनिक अंदाज़ भी बदल जाते हैं और वही सब कुछ अंदाज़ उनका भी होता है जो उनसे पहले के शासकों और बादशाहों का था। हमने तो नज़दीक से यह सारी चीज़े देखी हैं और हमारी जनता के लिए भी यह कोई नई बात नही है और कोई तअज्जुब की बात भी नही है।
इमाम (रह) ने इस तरह के नज़रियों और अक़ीदे को ग़लत क़रार दिया और सिद्ध किया कि किसी क़ौम और मुसलमानों के महबूब क़ायद और लीडर ज़ाहिदाना ज़िन्दगी के मालिक हो सकते हैं और एक सादा ज़िन्दगी गुज़ार सकते हैं एक आलीशान मुहल्लों के बजाए एक इमाम बारगाह में अपने मिलने वालों से मुलाक़ात कर सकते हैं नबियों की ज़बान, अखलाक़ और लिबास में लोगों से मिल सकते हैं। अगर शासकों और उनके मंत्रियों के दिल वास्तविकता और मारिफत के नूर से रौशन होंते हैं तो ज़ाहिरी चमक दमक, थाट बाट, इसराफ, ऐश और इशरत की ज़िन्दगी, खुद नुमाई, घमंड और ग़ुरूर और इस जैसी दूसरी तमाम बातें उनकी इस शासकीय ज़िम्मेदारियों का भाग नही समझी जाएँगी।
इमाम (रह) के बड़े कारनामों में से एक यह था कि वह अपनी व्यक्तिगत ज़िन्दगी में भी और जब आप देश और क़ौम के सबसे बड़े लीडर थे उस समय भी वास्तविकता और मारिफत का नूर उनके पूरे वजूद में जलवा कर रहा था।
इमाम खुमैनी (रह) ने ईरानी क़ौम के अंदर खुद एतिमादी और इज़्ज़ते नफ्स को ज़िन्दा किया
ज़ालिम शाह की ज़ालिम और भ्रष्टाचार में लिप्त हुकूमत और इसी तरह उसकी पिट्ठू हुकूमतों ने कई सालों तक ईरानी क़ौम को एक कमज़ोर क़ौम में बदल कर रख दिया था वह भी ऐसी क़ौम कि जिसके अंदर ग़ैरे मामूली सलाहियतें पाई जाती हैं और इस्लाम के आगाज़ से पूरी तारीख में इसका शानदार इल्मी और राजनिति माज़ी था। बाहर की ताक़तों ने काफी समय तक जिनमे कभी अंग्रेज़ों और रुसियों ने तो कभी यूरोपियों और अमरिकियों ने हमारी क़ौम की तहक़ीर की और उन्हें दबाये रखा। हमारी क़ौम के लोगों को भी यह यक़ीन हो गया था कि वह बड़े बड़े कामों को अंजाम देने की सलाहियत नही रखते हैं। देश की तरक़्क़ी और उसे बनाने में वह कुछ भी करने की ताक़त नही रखते हैं। कुछ नया करने के लिए उनके पास कुछ नही है बल्कि दूसरे ही आयें और उनके लिए काम करें उन पर शासन करें। और इस तरह हमारी क़ौम से उनका क़ौमी वक़ार छीन लिया गया था और उनकी इज़्ज़ते नफ्स का खून कर दिया गया था लेकिन हमारे इमाम ने ईरान की जनता के दरमियान क़ौमी इफ्तिखार और इज़्ज़ते नफ्स को दुबारा ज़िन्दा किया। हमारी क़ौम के अंदर ज़ाति भेद भाव और घमंड नही है लेकिन इसके अंदर इज़्ज़त और ताक़त का एहसास ज़रुर पाया जाता है।
आज हमारी क़ौम मशरिक़ और मग़रिब की मिली हुई साज़िशों और अपने खिलाफ किसी भी तरह की धौंस और धमकियों से नही डरती और किसी तरह की कमज़ोरियों का एहसास नही करती। हमारे जवान इस बात का एहसास कर रहे हैं कि वह खुद अपने देश की तरक़्क़ी में अपना रोल अदा कर सकते हैं। लोगों को अब अपनी इस ताक़त और सलाहियत का एहसास दिलाने लगा है कि वह मशरिक़ और मग़रिब की धमकियों और खतरों के मुक़ाबले में खड़े हो सकते हैं। इज़्ज़ते नफ्स का यह एहसास और यह खुद एतिमादी और वास्तविक क़ौमी इफ्तिखार इमाम (रह) ने क़ौम के अंदर दुबारा ज़िन्दा किया।
इमाम खुमैनी (रह) ने मशरिक़ और मग़रिब से वाबस्तगी का नज़रिया बातिल कर दिया
आपने सिद्ध किया कि मशरिक़ और मग़रिब से दूरी को बाक़ी रखने की पालीसि को अमल कर के दिखाया जा सकता है। दुनिया वाले यह समझ रहे थे कि या तो मशरिक़ से जुड़ना पड़ेगा या फिर मग़रिब के साथ होना पड़ेगा या तो इस ताक़त की रोटी खानी पड़ेगी या फिर उनकी चापलूसी और तारीफ करनी पड़ेगी या फिर इस ताक़त का गुन गाना पड़ेगा और हाँ में हाँ मिलाना पड़ेगी। लोग यह नही समझ पा रहे थे कि कोई क़ौम कैसे मशरिक़ से भी खुद को अलग रखे और मग़रिब से भी दूरी करे और दोनो से नाखुशी का इज़हार करे और फिर अपने पैरों पर खड़ी भी रहे ? यह कैसे मुम्किन है किसी से भी न जुड़े और किसी के भी झंडे के नीचे न जायें और दुनिया में अपना नाम रौशन करें ? मगर इमाम (रह) ने इस कारनामे को कर दिखाया और इस बात को साबित कर दिया कि मशरिक़ और मग़रिब की ताक़तों से दूरी करके भी ज़िन्दा रहा जा सकता है और इज़्ज़त और आबरु के साथ ज़िन्दगी गुज़ारी जा सकती है।

रेफरेन्सेस :इमाम खुमैनी र.अ पुब्लिशेद इन असतं क़ुद्स रज़ावी
इमाम खुमैनी र.अ की किताबे और उनके बारें में जानने के लिए http://en.imam-khomeini.ir/ विजिट करें .






Amaal e Maahe shabaan al moazzam :::Roz ke kuch amaal


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